Essay : (राष्ट्रीय एकता) RASHTRIYA EKTA Nibandh in Hindi
राष्ट्रीय एकता पर निबंध (Rashtriya Ekta Essay in Hindi):
Given below some lines of Short Essay / Nibandh on Rashtriya Ekta in Hindi.
Given below some lines of Short Essay / Nibandh on Rashtriya Ekta in Hindi.
भारतवर्ष एक विशाल देश है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का इतिहास बहुत लम्बा और उत्थान-पतन की घटनाओं से भरा है। भारत विविधताओं में एकता का देश है। इसके अंदर भौतिक विषमताओं के साथ-साथ भाषा, धर्म, वर्ण, रूप-रंग, खान-पान और आचारों-विचारों में भी विषमता पाई जाती है, किन्तु फिर भी भारत एक सुसंगठित राष्ट्र है।
राष्ट्रीय एकता एक प्रबल शक्ति है। यह वीरता और बलिदान के कार्यों को बढ़ावा देती है और जनता में आत्म-विश्वास उत्पन्न करती है। यह देशवासियों को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। संसार के अनेक राष्ट्रों ने राष्ट्रीय एकता की भावना से प्रेरित होकर अभूतपूर्व उन्नति की है। राष्ट्रीय एकता जनता को व्यक्ति और समाज, दोनों के रूप में प्रोत्साहन और प्रेरणा देती है। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरम्भ किया तो समूचा राष्ट्र एक भावना से गांधीजी के साथ हो लिया। राष्ट्रीय एकता के अभाव अथवा दलगत स्वार्थों के प्रभाव से देश पर बहुत चोट पड़ी है। यदि हम प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास पर नज़र डालें तो ज्ञात होगा कि राष्ट्रीय एकता के अभाव में ही भारत को समय-समय पर विदेशी आक्रमणों और लूट-पात के आघात-प्रतिघात को सहना पड़ा।
अब हमें अपनी आज़ादी की रक्षा के लिए आंतरिक संगठन और भावात्मक एकता के महत्त्व को समझना अति आवश्यक है। आज आवश्यकता है ऐसे प्रचार व प्रसार की, जिससे लोग अनुभव करें कि हम सब एक हैं। हम सब भारतीय हैं। भारतीय संस्कृति ही हमारी संस्कृति है। इस संस्कृति की तथा भारतीय गौरव की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। राष्ट्र-निर्माण हेतु हमें तन-मन-धन से योगदान करना है। हमें अब ऐसे वातावरण का ढांचा तैयार करना चाहिए जिससे अखिल-भारतीय एकता का संचार हो और जिसमें विघटनकारी सांप्रदायिक प्रवृतियों को पनपने का अवसर न मिल सके।
इस प्रकार की राष्ट्रीय एकता एक सुनियोजित शिक्षा-प्रणाली और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास से प्राप्त की जा सकती है। कभी-कभी व्यर्थ के विवाद इतने बढ़ जाते हैं कि उनसे आंतरिक शांति भंग हो जाती है और समूचा राष्ट्र अवनतोन्मुख होकर अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक घटनाओं का शिकार बन जाता है। इसलिए देश के नेताओं का यह परम कर्तव्य है कि वे स्वार्थपरता और गुटबंदी के विचारों को छोड़कर समस्त राष्ट्र का हितचिंतन करते हुए जनता में राष्ट्रीय एकता के भाव उत्पन्न करें।
राष्ट्रीय एकता एक प्रबल शक्ति है। यह वीरता और बलिदान के कार्यों को बढ़ावा देती है और जनता में आत्म-विश्वास उत्पन्न करती है। यह देशवासियों को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। संसार के अनेक राष्ट्रों ने राष्ट्रीय एकता की भावना से प्रेरित होकर अभूतपूर्व उन्नति की है। राष्ट्रीय एकता जनता को व्यक्ति और समाज, दोनों के रूप में प्रोत्साहन और प्रेरणा देती है। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरम्भ किया तो समूचा राष्ट्र एक भावना से गांधीजी के साथ हो लिया। राष्ट्रीय एकता के अभाव अथवा दलगत स्वार्थों के प्रभाव से देश पर बहुत चोट पड़ी है। यदि हम प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास पर नज़र डालें तो ज्ञात होगा कि राष्ट्रीय एकता के अभाव में ही भारत को समय-समय पर विदेशी आक्रमणों और लूट-पात के आघात-प्रतिघात को सहना पड़ा।
अब हमें अपनी आज़ादी की रक्षा के लिए आंतरिक संगठन और भावात्मक एकता के महत्त्व को समझना अति आवश्यक है। आज आवश्यकता है ऐसे प्रचार व प्रसार की, जिससे लोग अनुभव करें कि हम सब एक हैं। हम सब भारतीय हैं। भारतीय संस्कृति ही हमारी संस्कृति है। इस संस्कृति की तथा भारतीय गौरव की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। राष्ट्र-निर्माण हेतु हमें तन-मन-धन से योगदान करना है। हमें अब ऐसे वातावरण का ढांचा तैयार करना चाहिए जिससे अखिल-भारतीय एकता का संचार हो और जिसमें विघटनकारी सांप्रदायिक प्रवृतियों को पनपने का अवसर न मिल सके।
इस प्रकार की राष्ट्रीय एकता एक सुनियोजित शिक्षा-प्रणाली और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास से प्राप्त की जा सकती है। कभी-कभी व्यर्थ के विवाद इतने बढ़ जाते हैं कि उनसे आंतरिक शांति भंग हो जाती है और समूचा राष्ट्र अवनतोन्मुख होकर अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक घटनाओं का शिकार बन जाता है। इसलिए देश के नेताओं का यह परम कर्तव्य है कि वे स्वार्थपरता और गुटबंदी के विचारों को छोड़कर समस्त राष्ट्र का हितचिंतन करते हुए जनता में राष्ट्रीय एकता के भाव उत्पन्न करें।
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