(सुमित्रानंदन पंत) SUMITRANANDAN PANT in Hindi | Jivani | Jeevan Parichay | Essay
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant Jivani in Hindi):
Given below some lines for Short Essay / Jeevan Parichay of Sumitranandan Pant in Hindi.
Given below some lines for Short Essay / Jeevan Parichay of Sumitranandan Pant in Hindi.
'सुमित्रानंदन पंत' का जन्म सन 1900 ई० में अल्मोड़ा, उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) के कैसोनी गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पंत था। इनके पिता एक अच्छे जमींदार थे। जन्म के कुछ घंटों के बाद ही इनकी माता का निधन हो गया था अतः इनका पालन-पोषण इनकी दादी ने किया था।
सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में ही हुई। सात वर्ष की आयु में इन्होने सर्वप्रथम छन्द की रचना की थी। इनका बचपन का नाम गुसांई दत्त था। जब ये उच्च शिक्षा प्राप्त करने अल्मोड़ा आये तो इन्होने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। सन 1919 में इन्होने इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया परन्तु महात्मा गांधी जी से प्रेरणा पाकर कॉलेज छोड़ दिया।
सुमित्रानंदन पंत ने स्वाध्याय से भारतीय दर्शन, संस्कृति, हिन्दी, अंग्रेजी तथा बंगला का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। इन्होने मार्क्सवाद का अध्ययन किया। तत्पश्चात इन्होने इलाहाबाद आकर 'रूपाभ' पत्रिका निकाली। प्रकृति से इन्हें बड़ा प्रेम रहा है। ये साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किये गए हैं। भारत सरकार ने इन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से अलंकृत किया। सन 1977 ई० को इनका निधन हो गया।
सुमित्रानंदन पंत की रचना 'चिदम्बरा' पर इन्हें 'ज्ञान पीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। इनकी अन्य रचनाएं (काव्य संग्रह) निम्नलिखित हैं-- 'वीणा', 'ग्रंथि', 'पल्लव', 'पल्ल्विनी', 'अतिमा', 'गुंजन', 'युगांत', 'युगवाणी ग्राम्या', 'स्वर्ण किरण', 'स्वर्ण धूलि', 'उत्तरा', 'शिल्पी' और 'रश्मिबन्ध' आदि। 'लोकायतन' इनका महाकाव्य है। इसके अतिरिक्त इन्होने कुछ नाटक, कहानियाँ और अनुवाद कार्य भी किया।
प्रकृति का जैसा सुन्दर और सजीव चित्रण पंत जी की कविता में मिलता है वैसा दुर्लभ है। वे प्रकृति के सुकुमार कवि थे। उनको सजीव, सुन्दर और मनोरम चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त प्राप्त थी। राष्ट्र प्रेम की रचना भी पंत जी के काव्य में बहुतायत से मिलती है। ये एक गंभीर विचारक थे, उत्कृष्ट कवि थे और मानवता के सहज आस्थावान कुशल शिल्पी थे।
सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में ही हुई। सात वर्ष की आयु में इन्होने सर्वप्रथम छन्द की रचना की थी। इनका बचपन का नाम गुसांई दत्त था। जब ये उच्च शिक्षा प्राप्त करने अल्मोड़ा आये तो इन्होने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। सन 1919 में इन्होने इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया परन्तु महात्मा गांधी जी से प्रेरणा पाकर कॉलेज छोड़ दिया।
सुमित्रानंदन पंत ने स्वाध्याय से भारतीय दर्शन, संस्कृति, हिन्दी, अंग्रेजी तथा बंगला का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। इन्होने मार्क्सवाद का अध्ययन किया। तत्पश्चात इन्होने इलाहाबाद आकर 'रूपाभ' पत्रिका निकाली। प्रकृति से इन्हें बड़ा प्रेम रहा है। ये साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किये गए हैं। भारत सरकार ने इन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से अलंकृत किया। सन 1977 ई० को इनका निधन हो गया।
सुमित्रानंदन पंत की रचना 'चिदम्बरा' पर इन्हें 'ज्ञान पीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। इनकी अन्य रचनाएं (काव्य संग्रह) निम्नलिखित हैं-- 'वीणा', 'ग्रंथि', 'पल्लव', 'पल्ल्विनी', 'अतिमा', 'गुंजन', 'युगांत', 'युगवाणी ग्राम्या', 'स्वर्ण किरण', 'स्वर्ण धूलि', 'उत्तरा', 'शिल्पी' और 'रश्मिबन्ध' आदि। 'लोकायतन' इनका महाकाव्य है। इसके अतिरिक्त इन्होने कुछ नाटक, कहानियाँ और अनुवाद कार्य भी किया।
प्रकृति का जैसा सुन्दर और सजीव चित्रण पंत जी की कविता में मिलता है वैसा दुर्लभ है। वे प्रकृति के सुकुमार कवि थे। उनको सजीव, सुन्दर और मनोरम चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त प्राप्त थी। राष्ट्र प्रेम की रचना भी पंत जी के काव्य में बहुतायत से मिलती है। ये एक गंभीर विचारक थे, उत्कृष्ट कवि थे और मानवता के सहज आस्थावान कुशल शिल्पी थे।
(सुमित्रानंदन पंत) SUMITRANANDAN PANT in Hindi | Jivani | Jeevan Parichay | Essay
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