(भारतेंदु हरिश्चन्द्र) BHARTENDU HARISHCHANDRA in Hindi | Jivani | Jeevan Parichay | Essay
भारतेंदु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय (Bhartendu Harishchandra Jivani in Hindi):
Given below some lines for Short Essay / Jeevan Parichay of Bhartendu Harishchandra in Hindi.
Given below some lines for Short Essay / Jeevan Parichay of Bhartendu Harishchandra in Hindi.
'भारतेंदु हरिश्चन्द्र' का जन्म 9 सितंबर, 1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेंदु' उनकी उपाधि थी। इनके पिता का नाम सेठ गोपालचन्द्र था। वे हिन्दी के बहुत अच्छे कवि थे। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जब दस वर्ष के थे तब इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। अतः विद्यालय में शिक्षा न पा सके। इन्होने घर पर ही हिन्दी, संस्कृत और बंगला आदि का ज्ञान प्राप्त किया। ये काव्य साधना में लग गये। इन्होने कवि वचन सुधा और हरिश्चन्द्र मैगजीन नामक पत्रिकाएं प्रकाशित की। भारतेंदु हरिश्चन्द्र बड़े प्रतिभा सम्पन्न और संवेदन शील व्यक्ति थे। 7 जनवरी सन 1885 ई० में 35 वर्ष की अल्पायु में ही इनका स्वर्गवास हो गया था। इतने अल्प समय में ही इन्होने हिन्दी साहित्य की अपार श्री वृद्धि की। आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी के अनुसार भारतेंदु हरिश्चन्द्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को भी नये मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी की प्रमुख रचनाएं निम्न हैं-- मौलिक नाटक, वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति, चन्द्रावली, भारत दुर्दशा, नीलदेवी, अन्धेरी नगरी, प्रेम जोगिनी आदि। उनके प्रमुख अनुवादित नाटक निम्न हैं-- विद्या सुन्दर, पाखंड विडम्बन, धन जन विजय, रत्नावली नाटिका आदि। उनके प्रमुख काव्य संग्रह निम्न हैं-- प्रेम प्रलाप, सुमनाञ्जलि वैजन्ती, भारतवीर आदि। लीलावती, सुलोचना, मदालसा तथा कश्मीर कुसुम, दिल्ली दरबार दर्पण आदि उनके प्रमुख निबन्ध तथा अन्य संग्रह हैं। इस प्रकार भारतेंदु जी का एक पत्रकार, निबन्धकार एवं नाटककार के रूप में हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान है। वे आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे उच्चकोटि के कवि और समाज सुधारक भी थे। शुक्ल जी के शब्दों में "भारतेंदु जी जिस प्रकार वर्तमान गद्य भाषा स्वरुप के प्रतिष्ठापक थे उसी प्रकार वर्तमान साहित्य परम्परा के प्रवर्तक। " भारतेंदु हरिश्चन्द्र हिन्दी में आधुनिक साहित्य के जन्मदाता और भारतीय पुनर्जागरण के एक स्तंभ के रूप में सदैव मान्य रहेंगे। भारतेंदु हरिश्चन्द्र' आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेंदु हरिश्चन्द्र हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेंदु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेंदु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। भारतेंदु के जीवन का उद्देश्य अपने देश की उन्नति के मार्ग को साफ़-सुथरा और लम्बा-चौड़ा बनाना था। उन्होंने इसके काँटों और कंकड़ों को दूर किया। उसके दोनों ओर सुन्दर-सुन्दर क्यारियां बनाकर उनमें मनोरम फल-फूलों के वृक्ष लगाए। इस प्रकार उसे सुरम्य बना दिया की भारतवासी उस पर आनंदपूर्वक चलकर अपनी उन्नति के इष्ट स्थान तक पहुँच सकें। 'निज भाषा उन्नति' की दृष्टि से भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने 1868 में 'कविवचनसुधा' नामक पत्रिका निकाली, 1873 में 'हरिश्चंद्र मैगज़ीन' और फिर 'बाला-बोधिनी' नामक पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक नाटक एवं काव्य-कृतियों की रचना की। उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 में उन्हें 'भारतेंदु' की उपाधि प्रदान की थी, जो उनके नाम का पर्याय बन गया। हिंदी भाषा और साहित्य में जो उन्नति आज दिखाई पड़ रही है उसके मूल कारण भारतेंदु जी ही हैं और उन्हें ही इस उन्नति के बीज को रोपित करने का श्रेय प्राप्त है।
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